( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )
नर ! सोच , कि अपना
कौन यहाँ ? ॥टेक ॥
मात पिता है कष्टके प्यारे ।
बिन कष्ट मोहे ' दूर ' कहा || १ ||
जोरू तो ज्वानीकी साथी ।
धनके खातिर देत गहाँ || २ ||
लड़का तो चाहता है अरामी ।
वहि भगता है जहाँ वहाँ || ३ ||
तुकड्यादास कहे बिन हरिके ।
आखिर अपना कौन रहा ? || ४ ||
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